लव्ज्ञ कितने
पर होठो तक
आती नही,
दिल के
उस झरोके मे
लटकती है,
जाते भी नही,
सिर्फ एक एह्सास है
गुलाब की खुशबू की तरह,
जो हवा से बिखरा हुआ
पहुचता है,
और रुक जाता है
उस गहरे सन्नाटे पर,
जहॉ तुम और मै नही होते,
सिर्फ एक एहसास होता है,
दिल का ये राज्ञ
पहचानने का,
दिल की बात
दिल से सुनने का
पर होठो तक
आती नही,
दिल के
उस झरोके मे
लटकती है,
जाते भी नही,
सिर्फ एक एह्सास है
गुलाब की खुशबू की तरह,
जो हवा से बिखरा हुआ
पहुचता है,
और रुक जाता है
उस गहरे सन्नाटे पर,
जहॉ तुम और मै नही होते,
सिर्फ एक एहसास होता है,
दिल का ये राज्ञ
पहचानने का,
दिल की बात
दिल से सुनने का
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