Sunday, September 7, 2014

प्यार किनारा है

झुकी हुई नज़रें
न जाने क्या ढूढ़तीं हैं
रुकी हुई सांसे
न जाने कहां खो जातीं हैं
जुड़े हुए होंठों पे
न जाने क्यों ये सन्नाटा है
पिगला हुआ दिल
न जाने कहां बह जाता है
आखिर आसमान तो ख़ड़ा है
अपने खुले बाहों से
दूर है तो सही
प्यार किनारा है
कभी कभी

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